श्रोत का ग़लत तर्क – Wikipedia, https://en.wikipedia.org/wiki/Diwali
थारु दिवाली के दिन क्यूँ मनाते हैं – “ शोक ? ”
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने के 15वें दिन अर्थात अमावस्या के दिन हिन्दुओं द्वारा दिवाली मनाई जाती है परन्तु थारू जनजाति के लोग इस दिन दिवाली ना मनाकर इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं जबकि वे भी हिन्दू धर्म का ही अनुपालन करते हैं।(इस तरह के प्रश्न लोक सेवा आयोग के प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न पूँछे जाते हैं )
“दरअसल अपने परंपरा के अनुसार इस दिन वे अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी याद में इस दिन शोक मनाते हैं तथा इसे वे दिवारी के नाम से भी पुकारते हैं। इस दिन वे अपने वैसे पूर्वजों को याद करते हैं जिनकी दिवारी के कुछ दिनों या कुछ महीनों पहले ही मृत्यु हुई होती है।
इस जनजाति के लोग अपने स्वर्गवासी परिवार के सदस्य की याद में एक पुतला तैयार करते हैं और दिवारी के दिन उसे जलाते हैं। पुतला जलाने के बाद अपने सभी रिश्तेदारों को अपने घर बुलाकर उन्हें भोज कराते हैं जिसे कि ‘बड़ी रोटी’ खिलाना कहा जाता है।”
उपरोक्त तर्क सही नहीं है लेखक पास अधूरी जानकारी है ,यहाँ उल्लेखनीय है कि थारु लोग दिवाली के दिवाली धूम -धाम से मनाते हैं परंतु यदि किसी थारु के घर दिवाली त्योहार से पूर्व ही किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार के लोग दिवाली नहीं“थारु जनजाति के लोग अपने स्वर्गवासी परिवार के सदस्य की याद में एक पुतला तैयार करते हैं और दिवारी के दिन उसे जलाते हैं। पुतला जलाने के बाद अपने सभी रिश्तेदारों को अपने घर बुलाकर उन्हें भोज कराते हैं जिसे कि ‘बड़ी रोटी’ खिलाना कहा जाता है।”
स्वर्गवासी परिवार के लोग जबतक दिवाली नहीं मनाते जब तक मृतक के प्रति शोक कार्यक्रम ना कर दे ,शोक पूरे ईस्ट मित्रों और रिश्तेदारों को सूचित किया जाता है इस कार्यक्रम घड़ा बोलते है (बड़ी रोटी अथवा श्रद्धांजलि कार्यक्रम / अथवा श्राद बोलते है ) झुँका बोलते (जो पुतला बनाया जाता उसे झुँका कहते हैं )है को नहीं जलाते हैं यह यह कार्यक्रम सिर्फ़ बुद्धवार और रविवार को ही किया जाता है अन्य दिनों में इस कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है ।
जिस मृत आत्मा की अंतिम विदाई देने के लिए जो कार्यक्रम आयोजित किया जाता है ,उस दिन उस व्यक्ति के मन पसंद पकवान बनाए जाते है जो वह जीवित रहते पसंद किया करते थे वह पकवान परोसा जाता है जो व्यक्ति खाने आदि की व्यवस्था करता है उसे पंछडहा कहा जाता है ।ऐसा माना जाता है की वह आत्मा उस दिन अपने घर वापस आती है ।
पंछडहा (मृतक व्यक्ति की शांति के लिए फूल और पानी देने वाला )ही उनके पूरे वस्त्र आदि को पहनाते है ।मृत आत्मा की पूजा की जाती है वस्त्र कई बार बदल -बदल के पहनाया जाता है मृत आत्मा को उनके मन पसंद के पारम्परिक नाच -गाना भी आयोजन किया जाता है और प्रातः लगभग ४ बजे के समय मृत आत्मा की अंतिम विदाई दी जाती है। झुऊँका को गाड़ी में लाद करके नदी या तालाब को पार कराया जाता है । यह माना जाता है कि हिंदू परंपरा के अनुसार मृत – आत्मा को भवसागर पार कराया जाता है यह माना जाता है कि अब वह आत्मा वापस कष्ट भोगने के लिए वापस ना आये ।यदि दिवाली से पूर्व इसे नहीं किया जाता है तो इसे अशुभ माना जाता है बड़ी रोटी श्राध्य को कभी भी किया जाता है परंतु दिवाली से पूर्व इसे करना शुभ माना जाता है ।
इस प्रकार दिवाली शोक का त्योहार नहीं है लेखक के द्वारा थारुओं के त्योहार को दिवाली को ग़लत तर्क देकर के घड़ा को दिवाली बताया गया जोकि सरासर ग़लत है “द थारु रिसर्च .कॉम ” ।
मनायी जाती है यहाँ लेखक ने जिस बात का उल्लेख किया है –
ओमकार राणा
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